सोच दो प्रकार की
होती है----सकारात्मक और नकारात्मक |नकारात्मक हमेशा न का आभास करती है और
सकारात्मक हां का| ज्यादातर मनुष्य नकारात्मक सोच ही रखते हैं और वे सदा उलझे ही
रहते हैं |जैसे एक कुत्ता एक दुकान के
सामने से जा रहा था |उस दुकान पर शीशे ही शीशे लगे हुए थे |उसने अपनी परछाई उन शीशों
में देखी उसे लगा वे सा रे कुते भी उसे ही देख रहें हैं |वह उन्हें देखकर भोंकने
लगा वे कुत्ते भी उसे भोंकते हुए लगने लगे |उसने उन कुत्तों पर प्रहार करने के लिए
उन पर सि र और पंजे मरने लगा |देखते ही देखते वह लहुलूहान हो गया |थोड़ी देर बाद
दूसरा कुत्ता वहां से निकला | उसने भी अपनी परछाई शीशे में देखी और वह खुश हो गया
|उसे लगा कि उसे खेलने के लिए दोस्त मिल
गए |वह जीभ से शीशे को चाटने लगा |वह लगभग आधा घंटा खेलकर चला
गया |इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच ही मन में रखनी चाहिए |तभी मनुष्य खुश भी रहता है
और वह अपने कार्य में सफल भी होता है |हर कर भी जीत की इच्छा रखता है |
परवीन मेहता
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