Friday, August 2, 2013

मधुमक्खियों से हमने सीखा.....


सुनो सुनो भाई बात सुनो, एक पते की बात सुनो
कहीं बड़ा सा था एक छत्ता, मधुमखियों का था वहाँ जत्था
जगह जगह वो घूम घूम, करती रहती थी शहद इकठ्ठा

दो दो रंग की मक्खी थी और छत्ते का था बड़ा आकार
इसी समस्या को सुलझाने, गिले शिकवे सबके मिटाने
वहाँ भी आई एक सरकार
सबसे बड़ी जो मक्खी थी वो, चुनी गयी उसकी सरदार
नए नियम कानून बने, करने को सबके सपने साकार

नए नए बागों में जाना, मीठा मीठा रस चुराना
थोड़ी भी बईमानी की तो, रानी मक्खी से डाँट खाना
जैसे जैसे समय बड़ा, सरकारी लोगो का परिवार बड़ा
क्योंकि वो थे नेता के बच्चे, काम में होते कैसे सच्चे ?
काम पे जाने को कतराते चोरी करने को ललचाते

भरा पड़ा था शहद भंडार, मक्खियों की मेहनत का सार
नेताओं की नज़र लगी और शुरू हुए अब दिन बेकार
चोरी-चकारी शुरू हुई, नीयत सबकी थी हुई खराब  
सबने मिलके धोखा दिया, हो भाई बहन या रिश्तेदार   
जनता बेचारी क्या करती ? उनकी हालत थी लाचार
सोचा और मेहनत करेंगे, बढ़ाने को छत्ते का भार

खूब मिलके जोर लगाया, लेकिन कुछ भी काम न आया
तभी समय की घडी वो आई, एक मक्खी ने हिम्मत दिखाई
पूछी उसने एक ही बात, हमारा शहद किसने चुराया-किसने चुराया
सरकार ने खेली राजनीती और बातों से जनता को भिड़ाया

जनता के बच्चे भूखे थे, लेकिन सरकार के मजे थे
किसी के घर में बूंद नहीं और किसी के शहद से लड़े पड़े थे
जनता भूख से मर रही थी, सरकारी लोग सो रहे थे
सरकार ने गंदे खेल जो खेले, वो जनता पे भरी पड़े थे 


लेकिन अब थी जनता की बारी, मिलकर सरकारी लोगों के घर रेड मारी
जनता देख के हुई हैरान, भरी पड़ी थी उनकी अलमारी
सारी करनी सरकार की थी, भोली जनता का फायदा उठाया
उन्ही से अपना काम कराया, उन्ही की पीठ पर छुरी भी मारी

जनता अब थी होश में आई, अपना हक हम वापस लेंगे चाहे करनी पड़े लड़ाई
आगे-आगे सरकार भागे, पीछे-पीछे जनता आई
जाना पड़ा सरकार को और जाते-जाते खायी पिटाई
जनता थी जो होश में आई, जनता थी जो होश में आई


                  
शिशुपाल सिंह



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