Saturday, August 24, 2013

सोच

सोच दो प्रकार की होती है----सकारात्मक और नकारात्मक |नकारात्मक हमेशा न का आभास करती है और सकारात्मक हां का| ज्यादातर मनुष्य नकारात्मक सोच ही रखते हैं और वे सदा उलझे ही रहते   हैं |जैसे एक कुत्ता एक दुकान के सामने से जा रहा था |उस दुकान पर शीशे ही शीशे लगे हुए थे |उसने अपनी परछाई उन शीशों में देखी उसे लगा वे सा रे कुते भी उसे ही देख रहें हैं |वह उन्हें देखकर भोंकने लगा वे कुत्ते भी उसे भोंकते हुए लगने लगे |उसने उन कुत्तों पर प्रहार करने के लिए उन पर सि र और पंजे मरने लगा |देखते ही देखते वह लहुलूहान हो गया |थोड़ी देर बाद दूसरा कुत्ता वहां से निकला | उसने भी अपनी परछाई शीशे में देखी और वह खुश हो गया |उसे लगा कि  उसे खेलने के लिए दोस्त मिल गए |वह जीभ से शीशे को चाटने लगा |वह लगभग आधा घंटा खेलकर चला गया |इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच ही मन में रखनी चाहिए |तभी मनुष्य खुश भी रहता है और वह अपने कार्य में सफल भी होता है |हर कर भी जीत की इच्छा रखता है |

परवीन मेहता 

No comments:

Post a Comment