Friday, July 19, 2013

अतिथि देवो भव:

भारत संस्कृति और परम्पराओं का देश है।  यहाँ लोग परम्पराओं का विशेष आदर करते हैं । यह परम्पराएँ हमारी जड़ें है , जों हमें हमारी संस्कृति और देश से बाँधे  हुए हैं । हमारे देश में अतिथि का विशेष सम्मान किया जाता रहा है , एक परंपरा है आतिथ्य सत्कार की "अतिथि देवो भव:" की।  यहाँ  अतिथि का अर्थ है , "जिसकी कोई तिथि न हो" । देव का अर्थ है "देवता" और भव: का अर्थ है "हो" , अर्थात जो व्यक्क्ति आने वाला है वह देवता के सामान है और उसका आतिथ्य सत्कार करना हमारा धर्म है । कुछ भी हो जाए परन्तु घर आए  अतिथि को बिना भोजन किए  भेज देना उचित नहीं माना  जाता । अतिथि को भगवान के समान पूजनीय समझा जाता है । घर का सदस्य भूखा रह जाए परन्तु अतिथि भूखा नहीं रहना चाहिए क्योंकि वह बहुत दूर से आने वाला भी हो सकता है । भारत की यह परंपरा आज भी वैसी ही है । उसमें कुछ  परिवर्तन आया है परन्तु वह आज भी विद्यमान है । जब कोई अतिथि घर आता है तो उसे बहुत ही प्रेम से भोजन खिलाया जाता है और उसका पूर्ण शक्ति के अनुसार आदर व सम्मानं किया जाता है । यही आदर और सम्मान हम सबके मन में होना चाहिए । 

श्री मान रवि शर्मा   




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