Saturday, July 27, 2013

वाणी का सच

मधुर वाचन है ओषधि ,कटुक वचन है तीर `किसी ने ठीक ही कहा है की वाणी सचमुच एक दवाई का ही काम करती है !यह एक वरदान है!वाणी में मधुरता होना आवश्यक है!मधुर वाणी हमारे सभी कामों को बना देती है!मधुर वाणी के द्वारा हम दुश्मन को भी अपना बना सकते हैं! जैसे एक बार चार आदमी किसी यात्रा पर जा रहे थे! चलते-चलते रात हो गई ,उन्होंने वहीँ पास के गाँव में रहने का निर्णय किया !गाँव के सरपंच ने उन्हें बताया कि यहाँ एक बुढिया है जिसके सात बेटे हैं और सभी शहर में रहते हैं! वे चारों दोस्त उस बुढिया के घर रहने के लिये चले गए !बुढिया ने उनका बहुत आदर सत्कार किया !बुढिया उनके लिए खाना बनाने लगी !चारों दोस्त उस बुढिया के पास बैठ गए !एक ने बुढिया से पूछा ‘अम्मां तुम्हारे कितने बेटे हैं !’बुढिया ने जवाब दिया ‘मेरे सात बेटे हैं!’दूसरे ने कहा ,’’कोई मारा नहीं !’दाल  बुढिया को बात बुरी लग गई उसने दाल का पतीला पकड़ा और उनके गमछे में पलट दिया !बुढिया ने उन्हें घर से जाने के लिये कह दिया !दाल गरम होने के कारणपोटली कंधे पर रखी नहीं जा रही थी !चारों ने एक –एक किनारा पकड़ लिया !उसमें से दाल का पानी नीचे टपक रहा था !राह चलते लोगो ने उनसे पूछा ,’भाई ये क्या टपक रहा है !’उन चारों  में से एक ने जवाब दिया कि हमारी वाणी का रस टपक रहा है !इसलिए जब भी बोलो सोच-समझकर तथा मधुरता से बोलो !  

परवीन मेहता 

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